काफी दोस्तों ने ,बुजुर्गो ने घुटने के दर्द के बारे में मेसेज कर के पुछा है उन की जानकारी के लिए ये पोस्ट लिखी गई है ,आप भी अपने परिचित जो ये पोस्ट शेयर करे ,या इसे अपने जानकारी के ग्रुप में शेयर करे ,इस मानवता के काम में आप भी भागिदार बने ,किसी के दर्द को दूर करने में जो मन की शांति मिलती है उसे आप भी प्राप्त करे
विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :-
र के बड़े-बुजुर्गो को जोड़ों का दर्द अधिक सताता है. यह दर्द कई कारणों से हो सकता है. प्रमुख कारण हैं- आर्थराइटिस और ऑस्टियोपोरोसिस. इस दर्द को नजरअंदाज करने के बजाय अगर विशेषज्ञों द्वारा बताये गये उपायों को हम अमल में लाएं, तो जिंदगी आसान हो सकती है. दर्द से लड़ने की खास जानकारी दे रहे हैं दिल्ली व पटना के एक्सपर्ट.
जोड़ों में दर्द का एक प्रमुख कारण आर्थराइटिस है. इसे ही गठिया भी कहते हैं. विशेष कर 60 उम्र के बाद यह रोग परेशान करता है. इसके रोगी के हड्डियों में सूजन, अकड़न और जोड़ों में दर्द होता है. ऐसा जोड़ों में यूरिक एसिड जम जाने से होता है. यूरिक एसिड के जमने से मरीज के जोड़ों में गाठें भी बन जाती हैं. यह बीमारी किसी को भी हो सकती है. मगर अधिकतर मामलों में यह अधिक उम्र के लोगों में ही होता है. सर्दियों में लोगों की जीवनशैली बदल जाती है. गरमी के मौसम के मुकाबले खान-पान बढ़ जाता है, सुबह की एक्सरसाइज या वाकिंग नहीं हो पाती, सुबह लेट उठना, धूप नहीं होना आदि कारणों से आर्थराइटिस की समस्या बढ़ जाती है.
ऑस्टियोपोरोसिस : 35-40 वर्ष से ऊपर के लोगों को विशेषकर यह परेशान करता है, क्योंकि बढ़ती उम्र में हड्डियों की गुणवत्ता के साथ-साथ घनत्व भी कम होने लगता है. शुरुआत में इसके लक्षणों का पता नहीं चलता. इसमें ज्यादातर कूल्हा, रीढ़ एवं जोड़ों की हड्डियां प्रभावित होती हैं. इनमें फ्रैर होना आम बात है. रोग की शुरुआत में दर्द नहीं होता है. लेकिन जब हड्डियां काफी कमजोर हो जाती हैं, तो हल्के झटके से भी फ्रैर हो जाता है. इस स्थिति में ही भयंकर दर्द होता है. ठंड में यह दर्द और बढ़ जाता है.
सजग रहेंगे तो मिलेगी राहत : यदि ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण दिखें तो लापरवाही न बरतें. डॉक्टरकी सलाह लें. बढ़ती उम्र में हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए डॉक्टर कई तरह के सप्लीमेंट्स व कैल्सियम देते हैं. उनके द्वारा दी गयी दवाइयों का सेवन नियमित रूप से करें. निर्देशानुसार एक्सरसाइज करें. बढ़ती उम्र में होनेवाले रोग को दवाइयों से उसी स्तर पर रोका जा सकता है जहां तक वह पहुंच चुकी है. इससे हड्डियां और अधिक कमजोर नहीं होती हैं और दर्द से भी छुटकारा मिल जाता है.
.विभिन्न औषधियों से चिकित्सा :-
1. ऐनाकार्डियम :- रोगी को ऐसा लगता है जैसे उसका शरीर किसी पट्टी में बंधा हुआ है, शरीर के किसी अंग को कसकर जकड़ा गया हो, ऐसा घुटनों पर अधिक होता है। रोगी के इस रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 6, 30 या 200 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है। इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण रीढ़ की हड्डी का अधिक कमजोर हो जाना है लेकिन रोगी को ऐसा लगता है कि घुटने जवाब दे रहे हैं, वह मुश्किल से चल पाता है, उसे ऐसा लगता है कि घुटने पट्टी के द्वारा जोर से बांध दिए गए हैं। रोग के ऐसी अवस्था में इस औषधि से उपचार करने पर बहुत अधिक लाभ मिलता है। ऐनाकार्डियम औषधि का जोड़ों पर अधिक प्रभाव होता है। घुटने सूज जाते हैं और रोगी को ऐसा लगता है कि घुटने की हड्डी में जख्म है जिसके कारण से दर्द हो रहा है, इस प्रकार की अवस्था में ऐनाकार्डियम औषधि से उपचार करना चाहिए।
2. साइलीशिया :- रोगी के शरीर की कई हडि्डयां टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती हैं, रोग होने की इस प्रकार की अवस्था में चिकित्सा करने के लिए साइलीशिया औषधि की 30 या 200 शक्ति का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है। जब बच्चों की हडि्डयां, खासकर रीढ़ की हड्डी टेढ़ी पड़ जाए तब इस औषधि के द्वारा उपचार करना अधिक लाभदायक होता है। रीढ़ की हड्डी में लकवा जैसी लक्षण दिखाई दे तो भी इस औषधि से उपचार करना चाहिए। कूल्हे या घुटने के जोड़ की हड्डी के रोग में यदि फिश्चुला नासूर हो जाए, रोगी तपेदिक प्रकृति का हो तब इस औषधि का सेवन करना लाभकारी है। इस औषधि का उपयोग करने से पहले बीमारी के प्राकृतिक लक्षण को ध्यान में रखना जरूरी होता है जैसे- रोगी को पसीना अधिक आता है, अंगूठे तथा पैर की अंगुलियों में जख्म हो जाता है, उसमें दर्द होता है, कभी-कभी बगल से पसीना भी आता है। बच्चे की ग्रन्थियां सूजकर पक गई हो तो उसका उपचार करने के लिए इसका उपयोग फायदेमन्द है।
3. फासफोरस :- यदि इस रोग का उपचार साइलीशिया औषधि से करने पर अधिक लाभ न हो तो इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी होगा। यदि रोगी के कूल्हे तथा घुटने की हड्डी के जोड़ पर दर्द है तो इसके प्रभाव से यह दर्द ठीक हो जाता है।
4. बेनजोइक एसिड :- घुटने पर सूजन होकर दर्द होना, घुटने की हड्डी में कड़कड़ की आवाज आना, अधिकतर दाएं घुटने की हड्डी से अधिक कड़कड़ की आवाजें होना। इस प्रकार के लक्षण होने के साथ ही रोगी के पेशाब से घोड़े की पेशाब की तरह बदबू आए तो रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 3 या 6 शक्ति का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है।
5. कॉस्टिकम :- रोगी के हडि्डयों के छोटे जोड़ों में दर्द होने के साथ ही वात-व्याधि (रियूमेटिस्म) होने से तेज दर्द हो और चलते हुए घुटने में कड़कड़ाने की तरह दर्द हो तो चिकित्सा करने के लिए कॉस्टिकम औषधि की 30 या 200 शक्ति का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है।
6. बर्बेरिस वलगैरिस :- जब रोगी चलता है तो चल चुकने के बाद उसके घुटनों में दर्द होता है, देर तक बैठे रहने के बाद घुटनों का काम न कर पाना, घुटनों का कड़ा पड़ जाना, घुटनों में दर्द होना, ऐसा दर्द होता है मानों उन पर चोट लगी हो, घुटनों में अधिक तेज थकान महसूस होती है। रोगी के रोग की ऐसी अवस्था में उपचार करने के लिए बर्बेरिस वलगैरिस औषधि की मूल-अर्क या 6 शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।
7. ऐग्नस कैस्टस :- घुटनों के जोड़ों में गठिया तथा जोड़ों के ठण्डा पड़ जाने पर इस औषधि की 3 या 6 शक्ति का सेवन करने से अधिक लाभ होता है।
8. कार्बो-वेज :- घुटनों पर अधिक ठण्डापन महसूस होता है तथा रात के समय में ऐसा अधिक होता है। कूल्हों तथा घुटनों की हडि्डयों में खिंचाव आना, जलन होना, कूल्हे की हड्डी के जोड़, जांघ तथा घुटने की हड्डी में अकड़न होना आदि लक्षण होने पर चिकित्सा करने के लिए इस औषधि की 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग किया जा सकता है।
9. कोक्कुलस इण्डीकस :- घुटने पर सूजन हो जाती है, घुटने की हड्डी का चलते समय कड़कड़ करना, अधिक कमजोरी होने के कारण घुटनों का जवाब देना। रोगी के रोग की ऐसी अवस्था में उपचार करने के लिए इस औषधि की 3, 30 शक्ति की मात्रा का प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
10. कैलकेरिया आर्स :- रोगी के बायें घुटने की स्नायु में दर्द होना। पैरों में इतनी अधिक कमजोरी महसूस होती है कि रोगी लंगड़ाने लगता है और जिसके कारण उसे पैरों को घसीटकर चलना पड़ता है, वृद्धावस्था में इस प्रकार के लक्षण अधिक होते हैं। रोगी के रोग के ऐसी अवस्था में रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 3 शक्ति की मात्रा का उपयोग लाभकारी होगा।
11. ब्रायोनिया :- घुटनें में दर्द होना, अकड़न होना, घुटने सूजकर लाल होना, चलने-फिरने में तेज दर्द होना, चलते हुए लंगड़ाना, घुटनों से लेकर पिण्डलियों तक दर्द फैलना। पैरों को चलाने से दर्द तेज हो जाता है। इस प्रकार के लक्षण होने पर रोग को ठीक करने के लिए 30 या 200 शक्ति का सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है।
12. रस टॉक्स :- रोगी को ऐसा महसूस होता है मानो कि घुटने की पेशियां छोटी हो गई हो, इस कारण से चलने में पैरों को खींचना पड़ता है। कुछ देर आराम करने या सुबह के समय में उठने पर घुटनों में अकड़न होने के साथ ही दर्द होता है जो चलने-फिरने से दर्द दूर हो जाता है। पैरों को चलाने से रोग के लक्षणों में कमी आती है। इस प्रकार के लक्षणों से पीड़ित रोगी के रोग को ठीक करने के लिए इस औषधि की 30 या 200 शक्ति का उपयोग फायदेमन्द होता है।
13. डायोस्कोरिया :- रोगी के घुटनों में लंगड़ापन, तेज दर्द, अधिक कमजोरी महसूस होती है। घुटने में कड़कड़ होती है। इस प्रकार के रोग के लक्षण को दूर करने के लिए इस औषधि की 3 शक्ति से उपचार करना लाभकारी होता है।
.
.
नोट -होमियोपैथी लक्षणों का बिज्ञान का है लक्षण मिलने पर ही दवा फ़ायदा करती है इसलिए अपने निकटतम स्थानीय पंजीकृत होमियोपैथी चिकित्सक से से सलाह लेकर ही औषधि का सेवन करें
.
.
नोट -होमियोपैथी लक्षणों का बिज्ञान का है लक्षण मिलने पर ही दवा फ़ायदा करती है इसलिए अपने निकटतम स्थानीय पंजीकृत होमियोपैथी चिकित्सक से से सलाह लेकर ही औषधि का सेवन करें
किर्पया किसी भी शंका के निवारण के लिए आप मेसेज करे क्योकि सभी शेयर की गई पोस्ट पर जा कर सवालो का जवाब देना संभव नहीं हो पता है
यह दवायें केवल उदहारण के तौर पर दी गयी है। कृपया किसी भीदवा का सेवन बिना परामर्श के ना करे, क्योकि होम्योपैथी में सभीव्यक्तियों की शारीरिक और मानसिक लक्षण के आधार पर अलग -अलग दवा होती है।
Dr.GurpreetSingh Makkar
HOMEOPATHIC PHYSICIAN
SUKHMANI HOMEOPATHIC MULTISPECIALITY CLINIC
9872-735707
WWW.ASKDRMAKKAR.COM
9872-735707
WWW.ASKDRMAKKAR.COM