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बवासीर : कारण और निवारण,पथरी का घरेलू इलाज,होम्योपैथिक उपचार :


गुदा के मुख में छोटे-छोटे अंकुर (मस्से) होते हैं, इनमें से एक, दो या अनेक मस्से फूलकर बड़े हो जाएँ तो इस स्थिति को आयुर्वेद ने 'अर्श' कहा है।

ये मस्से पहले कठोर होना शुरू होते हैं, जिससे गुदा में कोचन और चुभन-सी होने लगती है। ऐसी स्थिति होते ही व्यक्ति को सतर्क हो जाना चाहिए।

इस स्थिति में ध्यान न दिया जाए तो मस्से फूल जाते हैं और एक-एक मस्से का आकार मटर के दाने या चने बराबर हो जाता है। ऐसी स्थिति में मल विसर्जन करते समय तो भारी पीड़ा होती है लिहाजा अर्श का रोगी सीधा बैठ नहीं पाता।

रोगी को न बैठे चैन मिलता है और न लेटे हुए। यह बादी बवासीर होती है, बवासीर रोग में यदि खून भी गिरे तो इसे खूनी बवासीर (रक्तार्श) कहते हैं। यह बहुत भयानक रोग है, क्योंकि इसमें पीड़ा तो होती ही है साथ में शरीर का खून भी व्यर्थ नष्ट होता है।

बवासीर को आधुनिक सभ्यता का विकार कहें तो कॊई अतिश्योक्ति न होगी । खाने पीने मे अनिमियता , जंक फ़ूड का बढता हुआ चलन और व्यायाम का घटता  महत्व , लेकिन और भी कई कारण हैं  बवासीर के रोगियों के बढने में । 
Piles अथवा बवासीर का मर्ज जिसके होता है, उससे पूछिये कि उसका सुबह पाखाना करते समय अथवा उसके बाद उसका क्या हाल होता है ?
यह बहुत ही लापरवाह बीमारी है, जिसके हो जाती है , वह यह रोगी की लापरवाही का फायदा उठाकर बेपरवाह तरीके से बढती है और फिर जिन्दगी भर परेशान करती है /
आधुनिक चिकित्सा विग्यान में इस रोग का कोई सटीक इलाज नही है / अधिक बढ जाने पर आपरेशन कराना ही एक मात्र उपाय बच जाता है , लेकिन खान पान और जीवन शैली में परहेज न करने से यह फिर उसी स्वरूप में हो जाता है जैसा कि आपरेशन कराने के पहले था /
प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपैथी दोनों चिकित्सा विग्यान में इस रोग का अच्छा इलाज है / यदि रोग की प्रारम्भिक अवस्था हो तो इन दोनों चिकित्सा विग्यान की औषधियों का उपयोग करने से रोग का निर्मूलन अथवा रोग शान्ति अवश्य हो जाती है /
रोग के अधिक बढ जाने की अवस्था में प्राकृतिक उपचार के साथ साथ यदि होम्योपैथी की दवायें सेवन करता रहे तो बवासीर का रोग काबू में आ जाता है / लेकिन इसके लिये अपने नजदीक के किसी अधिक expert qualified physician के पास जाकर अथवा प्राकृतिक चिकित्सालय में रहकर इलाज कुछ दिन तक कराना चाहिये / बाद में जीवन शैली को लम्बे समय तक अपनाना चाहिये /
तो सबसे पहले जाने बवासीर और उसके मूल कारण :
आंतों के अंतिम हिस्से या मलाशय की धमनी शिराओंके फ़ैलने को बवासीर कहा जाता है ।
बवासीर तीन प्रकर की हो सकती है
बाह्य पाइल्स: फ़ैली हुई धमनी शिराओं का मल द्वार से बाहर आना
आन्तरिक पाइल्स : फ़ैली हुई धमनी शिराओं का मल द्वार के अन्दर रहना
मिक्सड पाइल्स: भीतरी और बाहरी मस्से
कारण :
बहुत दिनों तक कब्ज की शिकायत रहना
सिरोसिस आफ़ लिवर
ह्र्दय की कुछ बीमारियाँ
मध, मांस, अण्डा, प्याज , लहसुन, मिर्चा, गरम मसाले से बनी सब्जियाँ, रात्रि जागरण , वंशागत रोग ।
मल त्याग के समय या मूत्र नली की बीमारी मे पेशाब करते समय काँखना
गर्भावस्था मे भ्रूण का दबाब पडना
डिस्पेपसिया और किसी जुलाब की गोली क अधिक दिनॊ तक सेवन करना ।
लक्षण
मलद्वार के आसपास खुजली होना
मल त्याग के समय कष्ट का आभास होना
मलद्वार के आसपास पीडायुक्त सूजन
मलत्याग के बाद रक्त का स्त्राव होना
मल्त्याग के बाद पूर्ण रुप से संतुष्टि न महसूस करना
बवासीर से बचाव के उपाय
कब्ज के निवारण पर अधिक ध्यान दें । इसके लिये :
अधिक मात्रा मे पानी पियें
रेशेदार खाध पदार्थ जैसे फ़ल , सब्जियाँ और अनाज लें | आटे मे से चोकर न हटायें ।
मलत्याग के समय जोर न लगायें
व्यायाम करें और शारिरिक गतिशीलता को बनाये रखें ।
अगर बवासीर के मस्सों मे अधिक सूजन और दर्द हो तो :
गुनगुने पानी की सिकाई करें या ’सिट्स बाथ’ लें । एक टब मे गुनगुना पानी इतनी मात्रा मे लें कि उसमे नितंब डूब जायें  । इसमे २०-३० मि. बैठें ।


बवासीर का घरेलू इलाज
बवासीर दो प्रकार की होती है,खूनी बवासीर और बादी वाली बवासीर,खूनी बवासीर में मस्से खूनी सुर्ख होते है,और उनसे खून गिरता है,जबकि बादी वाली बवासीर में मस्से काले रंग के होते है,और मस्सों में खाज पीडा और सूजन होती है,अतिसार संग्रहणी और बवासीर यह एक दूसरे को पैदा करने वाले होते है।
बवासीर के रोगी को बादी और तले हुये पदार्थ नही खाने चाहिये,जिनसे पेट में कब्ज की संभावना हो,हरी सब्जियों का ज्यादा प्रयोग करना चाहिये,बवासीर से बचने का सबसे सरल उपाय यह है कि शौच करने उपरान्त जब मलद्वार साफ़ करें तो गुदा द्वार को उंगली डालकर अच्छी तरह से साफ़ करें,इससे कभी बवासीर नही होता है।
इसके लिये आवश्यक है कि मलद्वार में डालने वाली उंगली का नाखून कतई बडा नही हो,अन्यथा भीतरी मुलायम खाल के जख्मी होने का खतरा होता है,प्रारंभ में यह उपाय अटपटा लगता है,पर शीघ्र ही इसके अभ्यस्त हो जाने पर तरोताजा महसूस भी होने लगता है,इसके घरेलू उपचार इस प्रकार से है।
* जीरे को जरूरत के अनुसार भून कर उसमे मिश्री मिलाकर मुंह में डालकर चूंसने से तथा बिना भुने जीरे को पीस कर मस्सों पर लगाने से बवासीर की बीमारी में फ़ायदा होता है
* पके केले को बीच से चीरकर दो टुकडे कर लें और उसपर कत्था पीसकर छिडक दें,इसके बाद उस केले को खुले आसमान के नीचे शाम को रख दें,सुबह को उस केले को प्रात:काल की क्रिया करके खालें,एक हफ़्ते तक इस प्रयोग को करने के बाद भयंकर से भयंकर बवासीर समाप्त हो जाती है।
* छोटी पिप्पली को पीस कर चूर्ण बना ले,और शहद के साथ लेने से आराम मिलता है
* एक चम्मच आंवले का चूर्ण सुबह शाम शहद के साथ लेने पर बवासीर में लाभ मिलता है,इससे पेट के अन्य रोग भी समाप्त होते है
* खूनी बवासीर में नींबू को बीच से चीर कर उस पर चार ग्राम कत्था पीसकर बुरक दें,और उसे रात में छत पर रख दें,सुबह दोनो टुकडों को चूस लें,यह प्रयोग पांच दिन करें खूनी बवासीर की यह उत्तम दवा है
* पचास ग्राम रीठे तवे पर रखकर कटोरी से ढक दें,और तवे के नीचे आग जला दें,एक घंटे में रीथे जल जायेंगे,ठंडा होने पर रीठों को खरल कर ले या सिल पर पीस लें,इसके बाद सफ़ेद कत्थे का चूर्ण बीस ग्राम और कुश्ता फ़ौलाद तीन ग्राम लेकर उसमें रीठे बीस ग्राम भस्म मिला दें,उसे सुबह शाम मक्खन के साथ खायें,ऊपर से दूध पी लें,दोनो प्रकार के बवासीर में दस से पन्द्रह दिन में आराम आ जाता है,गुड गोस्त शराब आम और अंगूर का परहेज करें।
* खूनी बवासीर में गेंदे के हरे पत्ते नौ ग्राम काली मिर्च के पांच दाने और कूंजा मिश्री दस ग्राम लेकर साठ ग्राम पानी में पीस कर मिला लें,दिन में एक बार चार दिन तक इस पानी को पिएं,गरम चीजों को न खायें,खूनी बवासीर खत्म हो जायेगा।
* पचास ग्राम बडी इलायची तवे पर रख कर जला लें,ठंडी होने पर पीस लें,रोज सुबह तीन ग्राम चूर्ण पंद्रह दिनो तक ताजे पानी से लें,बवासीर में लाभ होता है
* हारसिंगार के फ़ूल तीन ग्राम काली मिर्च एक ग्राम और पीपल एक ग्राम सभी को पीसकर उसका चूर्ण जलेबी की पचास ग्राम चासनी में मिला लें,रात को सोते समय पांच छ: दिन तक इसे खायें,यह खूनी बवासीर का शर्तिया इलाज है,मगर ध्यान रखें कि कब्ज करने वाले भोजन को न करें
* दूध का ताजा मक्खन और काले तिल दोनो एक एक ग्राम को मिलाकर खाने से बवासीर में फ़ायदा होता है
* नागकेशर मिश्री और ताजा मक्खन इन तीनो को रोजाना सम भाग खाने से बवासीर में फ़ायदा होता है
* जंगली गोभी की तरकारी घी में पकाकर उसमें सेंधा नमक डालें,इस तरकारी को आठ दिन रोटी के साथ खाने से बवासीर में आराम मिलता है
* कमल केशर तीन मासे,नागकेशन तीन मासे शहद तीन मासे चीनी तीन मासे और मक्खन तीन मासे (तीन ग्राम) इन सबको मिलाकर खाने से बवासीर में फ़ायदा होता है
* नीम के ग्यारह बीज और छ: ग्राम शक्कर रोजाना सुबह को फ़ांकने से बवासीर में आराम मिलता है
* पीपल का चूर्ण छाछ में डालकर पीने से बवासीर में आराम मिलता है
* कमल का हरा पत्ता पीसकर उसमे मिश्री मिलाकर खायें,बवासीर का खून आना बन्द हो जाता है
* सुबह शाम को बकरी का दूध पीने से बवासीर से खून आना बन्द हो जाता है
* प्रतिदिन दही और छाछ का प्रयोग बवासीर का नाशक है
* प्याज के छोटे छोटे टुकडे करने के बाद सुखालें,सूखे टुकडे दस ग्राम घी में तलें,बाद में एक ग्राम तिल और बीस ग्राम मिश्री मिलाकर रोजाना खाने से बवासीर का नाश होता है
* गुड के साथ हरड खाने से बवासीर में फ़ायदा होता है
* बवासीर में छाछ अम्रुत के समान है,लेकिन बिना सेंधा नमक मिलाये इसे नही खाना चाहिये
* मूली का नियमित सेवन बवासीर को ठीक कर देता है

पथरी का घरेलू इलाज

किसी प्रकार से पेशाब के साथ निकलने वाले क्षारीय तत्व किसी एक स्थान पर रुक जाते है,चाहे वह मूत्राशय हो,गुर्दा हो या मूत्रनालिका हो,इसके कई रूप होते है,कभी कभी यह बडा रूप लेकर बहुत परेशानी का कारक बन जाती है,पथरी की शंका होने पर किसी प्रकार से डाक्टर से जरूर चैक करवा लेना चाहिये,इसके घरेलू उपचार इस प्रकार से है।
* पथरी को गलाने के लिये अध उबला चौलाई का साग दिन में थोडी थोडी मात्रा में खाना हितकर होता है,इसके साथ आधा किलो बथुए का साग तीन गिलास पानी में उबाल कर कपडे से छान लें,और बथुये को उसी पानी में अच्छी तरह से निचोड कर जरा सी काली मिर्च जीरा और हल्का सा सेंधा नमक मिलाकर इसे दिन में चार बार पीना चाहिये,इस प्रकार से गुर्दे के किसी भी प्रकार के दोष और पथरी बाली बीमारी के लिये दोनो साग बहुत उत्तम माने गये है।
* दो चुकन्दर लेकर उन्हे आयु के अनुसार पच्चीस से पचास प्रतिशत पानी में भली प्रकार उबालें,और चुकन्दर को मसल कर उसी पानी में मिला दें,फ़िर उसे छानकर जितना सहन हो सके गर्म अवस्था में पी जावें,यह काम लगातार पथरी के निकलने तक करते रहना है,खाना खाते समय एक या दो खीरा जरूर खायें,इससे पथरी एक माह में टूटकर निकल जायेगी,लेकिन जब तक पथरी जरा सी भी रहती है तब तक इस उपचार को जारी रखना जरूरी है,कारण अगर पथरी का एक भी मामूली सा टुकडा रह जाता है,तो वह चुम्बक की भांति और बडा बनता चला जायेगा।
* साठ ग्राम अच्छी नसल का प्याज लेकर उसे भली प्रकार से पीस लें,फ़िर उसे कपडे से निचोड कर रस निकालें,उसे खाली पेट सुबह को पीना चालू कर दें,कुछ समय उपरान्त वह पथरी बारीक टुकडों में तब्दील होकर निकल जायेगी।
* जीरे को मिश्री की चासनी अथवा शहद के साथ लेने पर पथरी घुलकर पेशाब के साथ निकल जाती है।
* तुलसी के बीज का हिमजीरा दानेदार शक्कर व दूध के साथ लेने से मूत्र पिंड में फ़ंसी पथरी निकल जाती है।
* एक मूली को खोखला करने के बाद उसमे बीस बीस ग्राम गाजर शलगम के बीज भर दें,फ़िर मूली को गर्म करके भुर्ते की तरह भून लें,उसके बाद मूली से बीज निकाल कर सिल पर पीस लें,सुबह पांच या छ: ग्राम पानी के साथ एक माह तक पीते रहे,पथरी और पेशाब वाली बीमारियों में फ़ायदा मिलेगा।
* यदि मूत्र पिंड में पथरी हो और पेशाब रुक रुक कर आना चालू हो गया है तो एक गाजर को नित्य खाना चालू कर देना चाहिये,इससे मूत्रावरोध दूर होगा,और पेशाब खुलकर साफ़ होगा,पेशाब के साथ ही पथरी घुल कर निकल जायेगी।
* सूके आंवले को नमक की तरह से पीस लें,उसे मूली पर लगाकर चबा चबा कर खायें,सात दिन के अन्दर पथरी पेशाब के रास्ते निकल जायेगी,सुबह खाली पेट सेवन करने से और भी फ़ायदा होता है।
* पहाडी कुल्थी और शिलाजीत दोनो एक एक ग्राम को दूध के साथ सेवन करने पथरी निकल जाती है
पेट के अल्सर और जलोदर की बीमारी का घरेलू इलाज
अल्सर का शाब्दिक अर्थ है- घाव,यह शरीर के भीतर कहीं भी हो सकता है,जैसे मुंह,पेट, और आंत आदि में,प्रन्तु अल्सर शब्द का अर्थ प्राय: आंतों के घाव के लिये लिया जाता है,यह घातक रोग है,लेकिन उचित आहार से अल्सर एक तो सप्ताह में ठीक हो सकता है,इसके घरेलू उपचार इस प्रकार से है।
* आंतों का अल्सर होने पर हींग को पानी में मिलाकर इसका एनीमा देना चाहिये,इसके साथ ही रोगी को सुपाच्य और सुपथ्य भोजन देना चाहिये।
* अल्सर के रोगी को ऐसा आहार देना चाहिये जिससे पित्त न बने,कब्ज और अजीर्ण न होने पाय।
* अल्सर होने पर एक पाव ठंडे दूध में एक पाव पानी मिलाकर देने से कुछ ही दिनो में अल्सर में आराम हो जाता है।
* छाछ की पतली कढी बनाकर रोगी को रोजाना देना चाहिये,अल्सर में मक्की की रोटी और कढी सुपाच्य है।
जलोदर रोग होने का मुख्य कारण सिर के जुंये का खाने या पानी के साथ पेट में चला जाना माना जाता है,इसलिये जिन महिलाओं के जुंये हों वे कदापि रसोई या खाने पीने के सामान के पास न जाया करें,जलोदर रोग में पेट का आकार बढ जाता है,और पेट में पानी इकट्ठा होता चला जाता है,ऐसी स्थिति में उल्टी आना,जी मिचलाता रहना,पतले दस्त आना,पेट का लगातार भारी रहना,और चलते वक्त पेट का पानी बजना मुख्य पहिचान मानी जाती है,इस रोग का इलाज आयुर्वेद के अलावा और किसी भी दवाई में नही है,डाक्टर सर्जरी के द्वारा पेट का पानी निकालते रहते है,लेकिन समय रहने पर फ़िर पानी बढता जाता है,और जैसे ही यह रोग अपनी पूरी ताकत पर होता है,खून का पानी बनाकर रोगी का जीवन समाप्त कर देता है,यह रोग पेट के अलावा सिर और पीठ में रीढ की हड्डी के पास भी पनपता है।
*शुद्ध पारा पांच ग्राम,शुद्ध गंधक द्स ग्राम,मैन्सिल,हल्दी शुद्ध जमालगोटा हरड बहेडा आंवला सोंठ पीपल काली मिर्च चित्रक की छाल पांच पांच ग्राम दंतीमूल का काढा,थूहर का दूध भांगरे का रस आवश्यकतानुसार लाना चाहिये,फ़िर पारा और गंधक को मिलाकर खूब घोंटना चाहिये,कज्जली हो जाने पर मैन्सिल मिलाकर रख दें,शेष सभी चीजों को कूट पीस कर छानकर रख दें,अब पहले दंतीमूल काढे की फ़िर थूहर के दूध की अंत में भांगरे के रस की भाप देकर कज्जली के साथ एक एक रत्ती की गोलिया बना लें, एक एक गोली सुबह शाम रोगी को पानी या गर्म दूध के साथ देना चालू कर दे,यह औषधि जलोदर को खत्म करने वाली है,और आयुर्वेद की दुकानो पर जलोदरारि रस के नाम से मिलती है।
* शिरीष की छाल दो भाग हल्दी नीम की छाल बायविडंग के बीज गोखरू आंवला नागरमोथा और पुनर्वा एक एक भाग कुल मिलाकर बीस ग्राम को एक लीटर पानी में तब तक उबालना चाहिये,जब तक कि पानी एक चौथाई नही रह जावे,इस काढे की आधी मात्रा शाम को और आधी मात्रा सुबह को देने से जलोदर का रोगी ठीक होना चालू हो जाता है,अगर रोगी स्त्री है तो पुरुष से और पुरुष है तो स्त्री से सहसवास नही करे,अन्यथा रोग फ़िर से उभर सकता है,इसका बचाव रोगी के ठीक होने के चार माह तक रखना उत्तम है।
* एक चम्मच खाने का मीठा सोडा एक कप ताजे गोमूत्र में छानकर पीने से जलोदर रोग शांत होता है,इसे सालभर दिन में एक बार लेना चाहिये।
बच्चों के सुगमता से दांत न निकलना
प्राय: दांत निकलते समय बहुत से बच्चों को तकलीफ़ उठानी पडती है,ऐसे मेम मसूडे दाहयुक्त सूजन अधिक लार का निकलना,हरे पीले दस्त तथा कभी कभी उल्टियां होना भी देखा जाता है,मसूडों में खुजली के कारण दूध पीते समय बच्चा स्तन को मुंह में दबाता है,किसी किसी बच्चे को दांत निकलते समय खांसी जुकाम ज्वर आंख या कान में पीदा आदि विकार भी देखे गये है,इनके लिये घरेलू उपचार इस प्रकार से हैं।
* चुटकी भर पिप्प्ली का चूर्ण लेकर शहद में मिलाकर मसूडो पर मलने से दांत बिना कष्ट निकल जाते हैं।
* दो सौ मिलीग्राम सुहागे को खीलमाता के दूध में मिलाकर बच्चे को दिन में एक दो बार चटाने से दांत सुगमता से निकलते है.
* सिरस के बीज की माला बालक के गले में पहना देने से बच्चे के दांत आराम से निकलते हैं.
* सीप की माला पहिनाने से बच्चे के दांत आराम से निकलते हैं
* मोतिआ सुहागा को तवे पर भून कर बनी हुयी खीलों को शहद के साथ मसूडों पर हल्की मालिस करने से दांत आराम से निकल जाते है
बच्चों को दस्त नही होना
मलावरोध
माता के अनुचित आहार विहार के कारण उसका दूध दूषित हो जाता है,जिससे बच्चे की पाचन शक्ति खराब होकर वायु विकारयुक्त हो जाती है,इसमें मल का सूख जाना,मल त्याग का अभाव पेट में दर्द गुडगुडाहट उल्टी आदि होते है,बच्चा रोते रोते बेहाल हो जाता है,ऐसी स्थिति में निम्नलिखित घरेलू उपचार करने चाहिये।
* नीम के तेल का फ़ाहा गुदा मार्ग में लगाने से मलावरोध दूर हो जाता है
* रात को बीज निकाला हुआ छुहारा पानी में भिगो दें और सुबह उसे पानी में मसल कर निचोड लें,छुहारे को फ़ेंक दें,वह पानी बच्चे को आवश्यकता के अनुसार देने से मलावरोध दूर हो जाता है
* बडी हरड को पानी के साथ पत्थर पर घिसकर उसमें मूंग के दाने के बराबर काला नमक डालें,उसे गुनगुना गरम करके बच्चे को एक चम्मच दिन में तीन बार देने से मलावरोध दूर हो जाता है.

सबसे पहली चिकित्सा तो यह करना चाहिए कि सुबह-शाम शौच जाएं। पेट में कब्ज न रहने दें, शौच के बाद स्वमूत्र से गुदा को धोना चाहिए। एक शीशी या डिब्बे में अपना मूत्र लेकर रख लेना चाहिए। इसके बाद गुदा को पुनः पानी से नहीं धोना है सिर्फ हाथ धो लेना है। गुदा में लगा मूत्र थोड़ी ही देर में सूख जाता है।

यह प्रयोग बहुत कारगर है, बवासीर की प्रारंभिक अवस्था में यह प्रयोग करने से बवासीर से छुटकारा मिल जाता है।

दूसरे उपाय में 

होम्योपैथिक उपचार :



किसी भी औषधि की सफ़लता रोगी की जीवन पद्दति पर निर्भर करती है । पेट के अधिकाशं रोगों मे रोगॊ अपने चिकित्सक पर सिर्फ़ दवा के सहारे तो निर्भर रहना चाहता है लेकिन  परहेज से दूर भागता है । अक्सर देखा गया है कि काफ़ी लम्बे समय तक मर्ज के दबे रहने के बाद मर्ज दोबारा उभर कर आ जाता है अत: बवासीर के इलाज मे धैर्य और संयम की आवशयकता अधिक पडती है ।


होम्योपैथिक उपचार व्यक्तिगत रूप से, खाते में लेने के रोग के सबसे हड़ताली अभिव्यक्तियों चयनित हैं, मानव मनोवैज्ञानिक प्रकार की संरचना के रूप में भी. हाँ, और "अनाज" बहुत आम नहीं है. वे दवाओं की छोटी खुराकों के होते हैं, क्या कभी कभी कारण अविश्वास और होम्योपैथी के लिए गंभीरता का अभाव. लेकिन कभी कभी यह हो सकता है की एक विधि, कि रोगी बवासीर हालत काफी आसानी होगी, और लंबा प्रवेश में ठीक से चयनित निधियों के रोगों से छुटकारा पाने के लिए भी.

होम्योपैथिक डॉक्टरों पर विश्वास, सभी उपचार के आधार होना चाहिए पर शरीर की रक्षात्मक प्रतिक्रियाओं द्वारा पर्याप्त वृद्धि हुई. हमारे शरीर की असीम अवसर, हम उनके बारे में ही पता नहीं. होम्योपैथिक दवाओं की छोटी खुराकों, शरीर की सुरक्षा को मजबूत बनाने की, खुद के रोग के साथ सामना मदद, अच्छी तरह से ज्ञात कट्टरपंथी दवा की मदद के बिना, एक शरीर उपचार है कि दूसरे को नुकसान का कारण बन सकते हैं.

askdrmakkar.com/Piles_Hemorrhoids_Homeopathic_treatment.aspx

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